पर्यावरण संरक्षण अधिनियम- 1986 (Environment Protection Act 1986 in Hindi)
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारत की एक प्रमुख कानून है जो पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित रखने और प्रदूषण को रोकने के लिए सम्पूर्ण उपाय उपलब्ध कराना है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम संसद द्वारा 23 मई 1986 को पारित किया गया था। और 19 नवंबर 1986 को लागू किया हुआ था। इसमें चार अध्याय तथा 26 धाराएं होती हैं। इसे पारित करने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को भारत में विधि (कानून) बनाकर लागू करना है।
इस अधिनियम के तहत, ध्यान देने वाले विषयों में शामिल हैं - वन्य जीव, वन और वन्य जीव संरक्षण, जल प्रबंधन, वातावरण, विकासी परियोजनाओं का पर्यावरणीय प्रभाव आदि। इसके अलावा, यह अधिनियम भूमि, वातावरण, औद्योगिक तथा नौसेना प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण जैसे विषयों पर भी ध्यान देता है।
इस अधिनियम के तहत, प्रतिबंधित गतिविधियों के लिए अनुमतियों की व्यवस्था है और पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिकारियों की नियुक्ति होती है। इसके अलावा, अधिनियम द्वारा नियमित रूप से पर्यावरण और वन संरक्षण संबंधी जानकारी का संग्रह भी किया जाता है ताकि लोगों को इसके बारे में जानकारी मिल सके और वे अपने आसपास के पर्यावरण को संरक्षित रख सकें।
इस अधिनियम का पालन करने के लिए अधिकारियों को शक्तियां और अधिकार होते हैं जो वे प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन और अन्य संबंधित अधिनियमों के तहत कार्रवाई कर सकते हैं। अधिकारियों के अलावा, इस अधिनियम के तहत अन्य विभिन्न संगठन और निगमों का गठन किया गया है जो पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
इस अधिनियम का मुख्य लक्ष्य पर्यावरण की संरक्षा और संरक्षण है। यह अधिनियम विभिन्न प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग रूपों में लागू होता है। इस अधिनियम के तहत सभी नागरिकों और संगठनों को अपने पर्यावरण के संरक्षण और संरक्षण में अपना योगदान देना होता है।
इस प्रकार, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ने संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित अनेक मुद्दों को लेकर सख्त कदम उठाए हैं। इसके तहत निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं-
1. प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों के नियंत्रण के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। ये नियम जल, हवा, ध्वनि और वन अधिनियम जैसे अन्य संबंधित नियमों के तहत आते हैं।
2. अधिकृत प्रबंधन के लिए अधिकारियों का गठन किया गया है। इन अधिकारियों को प्रदूषण नियंत्रण और वातावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने की शक्ति होती है।
3. अधिनियम में वातावरण के संरक्षण के लिए निर्धारित किए गए अनेक बाध्यताएं हैं। इनमें से कुछ हैं: तटीय इलाकों की संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के संभव प्रभावों का मूल्यांकन, पर्यावरण के संरक्षण के लिए वातावरणीय सतह के निरीक्षण और संबंधित अनुसंधान और प्रशिक्षण आदि।
4. अधिनियम में पर्यावरणीय सतह के लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं। इन मापदंडों का प्रयोग पर्यावरणीय मॉनिटरिंग और जलवायु परिवर्तन के संभव प्रभावों का मूल्यांकन करने में किया जाता है।
5. अधिनियम में पर्यावरण संरक्षण के लिए समुदायों को सशक्तिकरण देने के लिए भी उच्च प्राधिकारों का गठन किया गया है। ये समुदाय अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने में सक्षम होते हैं और वातावरण संरक्षण के लिए अपनी भूमिका निभाते हैं।
6. अधिनियम में अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए धनराशि निर्धारित की गई है। इससे नवाचार और तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलता है जो पर्यावरण के संरक्षण के लिए उपयोगी होते हैं।
7. इस प्रकार, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम द्वारा भारत सरकार ने वातावरण के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण को सुधारने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इससे पर्यावरण संरक्षण को समझने और उसे संभव प्रभावों से बचाने के लिए एक मानवीय उद्यम बनता है।