मैदान किसे कहते हैं (What is Plains in Hindi)
फिन्च तथा ट्रिवार्था के अनुसार, "समुद्र तल से लगभग 500 फीट तक ऊँचे निम्न भू-भाग मैदान कहलाते हैं।"
सीमेन के अनुसार, "मैदान कम ढाल तथा उच्चावच वाले समतल भू-भाग होते हैं।"
मैदानों का आर्थिक महत्व-
समतल होने के कारण सिंचाई के साधनों का पर्याप्त विकास हुआ है। इन दोनों के कारण मैदानों में कृषि सर्वाधिक विकसित है। इसीलिये मैदानों को 'संसार का अन्न भंडार' कहा जाता है।उद्योगों का विकास- समतल, उपजाऊ एवं सिंचाई की सुविधाओं के कारण मैदानों में कृषि प्रधान उद्योगों का विकास हुआ है।
मैदानों के प्रकार ->
1) पटल विरूपणी मैदान- पर्वत निर्माण के समय भूसन्नतियों के किनारे पर वलन पड़ने से बीच का भाग अप्रभावित रह जाता है। एवं कभी-कभी मैदानों के रूप में इनका विकास हो जाता है।
उदाहरण - हंगरी का मैदान (कार्पेथियन और डिनारिक आल्प्स पर्वतों के बीच), वृहद मैदान (ग्रेट प्लेन्स - USA)।
2) समप्राय मैदान- जब नदियाँ अपरदन प्रक्रिया द्वारा अपने आधार तल को प्राप्त कर लेती हैं तो संपूर्ण भूभाग एक समप्राय मैदान में बदल जाता है। यद्यपि इसमें कहीं-कहीं कठोर शैल मोडेनरॉक के रूप में दिखाई देता है।
० डेविस महोदय ने सर्वप्रथम पेनीप्लेन शब्द का प्रयोग किया तथा इसे चक्र की समाप्ति का लक्षण बताया।
० क्रिकमे महोदय ने इस मत का खण्डन किया और बताया कि चक्र की अंतिम अवस्था पैनप्लेन होता है जो कि क्षैतिज अपरदन द्वारा निर्मित न होकर बाढ़ के मैदान के मिल जाने से होता है।
उदाहरण - मिसीसिपी बेसिन का ऊपरी भाग, रूस का मध्यवर्ती भाग, भारत का अरावली क्षेत्र।
3) हिमानी निर्मित मैदान- हिमानी अपने अपरदन द्वारा उच्च भाग को घिसकर सपाट, परन्तु उच्चावचयुक्त मैदान का निर्माण करती है।
उदाहरण- उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में तथा उत्तर-पश्चिम एशिया में मिलते हैं। प्लीस्टोसीन काल में हिमचादरों के रूप देखने को मिले थे जिससे मैदानी भाग का निर्माण हुआ।
4) जलोढ़ मैदान- इसका निर्माण नदियों द्वारा लाये गये जलोढ़ों के जमाव से होता है। ये उपजाऊ मैदान तथा सर्वाधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र होते हैं।
उदाहरण- गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, ह्वांगहो तथा यांगटीसीक्यांग का मैदान, नील नदी का मैदान, मिसीसिपी का मैदान ।
5) डेल्टा का मैदान- जब नदियाँ सागरों या झीलों में गिरती हैं तो वेग में कमी के कारण मुहाने के पास तलहट का निक्षेप होने से समतल तिकोनाकार मैदान का निर्माण होता है जिसे डेल्टा कहते हैं। डेल्टा के ऊँचे भाग को चार और निचले भाग को बील (बंगाल में ) कहते हैं। भारत का गंगा डेल्टा जूट तथा चावल की कृषि के लिए विख्यात है। बांग्लादेश का गंगा डेल्टा विश्व का सबसे अधिक कच्चे जूट का उत्पादन करने वाला भाग है।
6) घास का मैदान- ये अत्यधिक उपजाऊ होते हैं। इन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता है-
i) उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदान- ये कर्क और मकर रेखा के बीच पाये जाते हैं। उदाहरण -
कम्पास (ब्राजीलियन उच्च भूमि)
लानोज (वेनेजुएला),
सेल्वास (अमेजन बेसिन),
सेराडो (बाजील),
पार्कलैण्ड (अफ्रीका),
पोर्कलैण्ड (ऑस्ट्रेलिया),
सवाना (पूर्वी अफ्रीका- केन्या, तन्जानिया),
साहेल (अफ्रीका में लाल सागर से अटलांटिक महासागर तक),
पटाना (श्रीलंका)।
ii) शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान- कर्क रेखा और मकर रेखा से उच्च अक्षांशों के बीच इस प्रकार के घास के मैदान पाये जाते हैं।
उदाहरण -
प्रेयरी (उत्तरी अमेरिका - USA, कनाडा, मैक्सिको),
पुस्टाज (हंगरी),
स्टेपी (पश्चिमी रूस, मध्य एशिया-यूरेशिया),
वेल्ड (दक्षिण अफ्रीका),
डाउन्स (ऑस्ट्रेलिया),
कैन्टरबरी (न्यूजीलैण्ड)
7) लोयस का मैदान- ऐसे मैदानों का निर्माण पवन द्वारा उड़ाकर लाये गये बालू (रेत) आदि के निक्षेपण से होता है। इसका नामकरण USA के मिसीसिपी घाटी के उपजाऊ मैदान से हुआ है। जबकि इसका सर्वाधिक विस्तार चीन में पाया जाता है। इसका विस्तार तुर्कमेनिस्तान में भी पाया जाता है।
लोयस का जमाव रेगिस्तानों से दूरस्थ स्थानों में होता हैं। इसमे मिट्टियों के कण इतने बारीक होते हैं कि इनमे परतें नही मिलती। परन्तु लोयस अत्यधिक पारगम्य होती हैं। मिट्टी मुलायम होती है। लोयस का निर्माण उस समय होता हैं जब पवन के साथ मिली हुई धूल नीचे बैठकर एक स्थान पर बडे पैमाने पर निक्षेपित हो जाती हैं | सबसे बड़ा लोयस का मैदान उत्तरी चीन में पाया जाता है।
लोएस कितने प्रकार के होते हैं?
लोएस में क्वार्ट्रज, फेल्सपार, अभ्रक तथा कैल्साइट इत्यादि खनिजों का मिश्रण पाया जाता है। ऑक्सीकरण की वजह से इनका रंग पीला या भूरा होता है। अन्य अपक्षय क्रियाओं का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। चीन की लोएस रेगिस्तानी है, जबकि यूरोप में जर्मनी, फ़्राँस, बेल्जियम इत्यादि देशों की लोएस हिमनदीय है।