प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत,(Plate Tectonic Theory In Hindi)
भूमिका:
- पृथ्वी की सतह अस्थाई एवं परिवर्तनशील है। पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के लिए अंतर्जात एवं बहिर्जात भूसंचलन को जिम्मेदार माना जाता है।
- सतह पर होने वाले इन परिवर्तनों को स्पष्ट करने के लिए अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया परंतु भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्जात भूसंचलन द्वारा सतह पर होने वाले परिवर्तनों से संबंधित दिए गए सिद्धांतों में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत,(Plate tectonic theory) के प्रतिपादन का श्रेय किसी एक भूगोलवेत्ता को नहीं जाता बल्कि महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, पुराचुंबकत्व अध्ययन एवं सागर नितल प्रसरण सिद्धांत का सम्मिलित रूप है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का विकास-
- स्थलीय दृढ़ भूखण्डों को ही प्लेट कहते हैं। इन प्लेटों के स्वभाव तथा प्रवाह से संबंधित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं।
- प्लेट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कनाडा के भूगर्भशास्त्री टूजो विल्सन के द्वारा 1955 में किया गया, जबकि प्लेट विवर्तनिक शब्द का प्रयोग मॉर्गन द्वारा किया गया।
- वर्ष 1967 में मैकेंजी, मॉर्गन व पारकर पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत,(Plate tectonic theory) का प्रतिपादन किया।
- 1962 में हैरी हेस ने महाद्वीपीय भागों से संबंधित अपना प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार सभी महाद्वीप एवं महासागर विभिन्न प्लेटों के ऊपर स्थित हैं जो हमेशा गतिशील हैं। इनकी गति के कारण ही कार्बोनिफेरस काल का विशाल स्थल खंड पैंजिया के विखंडन से निर्मित प्लेटों का स्थानांतरण हुआ जिससे कालांतर में महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति वर्तमान स्वरूप में हुआ।
- यह सिद्धांत वर्तमान व्यवस्था के भविष्य में परिवर्तित होने की ओर भी संकेत करता है, क्योंकि सभी प्लेट आज भी गतिशील हैं।
- प्लेट संकल्पना का प्रादुर्भाव 2 तथ्यों के आधार पर हुआ है- (i) महाद्वीपीय प्रवाह की संकल्पना (ii) सागर तली के प्रसार की संकल्पना।
प्लेट विवर्तनिकी-
प्लेट्स संचरण का कारण-
(I) अपसारी संचलन-
(II) अभिसारी संचलन-
अभिसारी प्लेट संचलन तीन प्रकार से होता है-(a) महाद्वीपीय- महासागरीय संचलन
(b) महाद्वीपीय- महाद्वीपीय संचलन
(c) महासागरीय- महासागरीय संचलन
(III) परवर्ती संचलन-
प्रमुख या बड़े प्लेट:
1. यूरेशियन प्लेट
2. इंडियन प्लेट
3. अफ्रीकी प्लेट
4. अमेरिकी प्लेट
5. पैसिफिक प्लेट
6. अंटार्कटिक प्लेट
Note- कुछ विद्वान उत्तरी अमेरिकन एवं दक्षिणी अमेरिकन प्लेट को एक मानते हुए बड़े प्लेटों की संख्या 6 मानते हैं।
छोटे प्लेट:
1. अरेबियन प्लेट
2. कैरेबियन प्लेट
3. स्कोशिया प्लेट
4. नाजका प्लेट
5. कोकोस प्लेट
6. फिलीपींस प्लेट
➡ इनके अतिरिक्त कई अन्य प्लेटों का भी पता चला है।
➡ महाद्वीपों का निर्माण करने वाली भू-प्लेट महाद्वीपीय भू-प्लेट (Continental Plate) तथा महासागरों के तल का निर्माण करने वाली भू-प्लेट महासागरीय भू-प्लेट (Oceanic Plate) कहलाती हैं।
➡ इन प्लेटों की औसत मोटाई 33 किलोमीटर है। महाद्वीपीय भाग में प्लेटों की औसत मोटाई 50-60 किलोमीटर है। महासागरीय भाग में यह मोटाई 5-10 किलोमीटर है। महाद्वीपीय प्लेटों का घनत्व 2.65 है, जबकि महासागरीय प्लेटों का घनत्व 2.95 है।
➡ इन प्लेटों पर स्थलाकृतियों का निर्माण भ्रंशन, विस्थापन आदि क्रियाएं होती रहती हैं, जिन्हें विवर्तनिकी कहते हैं। भूपटल के नीचे अधिक भारी एवं कठोर शैलों से निर्मित अनुपटल स्थित है। इसके नीचे दुर्बलता मंडल में पिघलता हुआ मैग्मा संवहन क्रिया द्वारा ऊपर उठता है तथा भूपटल में पहुंचकर दाएं और बाएं ओर प्रवाहित होता है। इससे भू-प्लेटें भी खिसकती हैं। यह क्रिया बहुत मंद गति से होती है।
ध्यातव्य है कि यह लघु प्लेट बड़े प्लेट से स्वतंत्र होकर गतिमान हो सकते हैं। इन प्लेटों के किनारे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन्हीं किनारों के सहारे ही भूकंपीय, ज्वालामुखीय तथा विवर्तनिक घटनाएं घटित होती हैं। अतः प्लेट के इन्हीं किनारों का अध्ययन महत्वपूर्ण है। सामान्य रूप में प्लेट के किनारों (Margins) तथा सीमा (Boundary) को तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है।
NOTE- प्लेट सीमा तथा किनारों में अंतर स्थापित करना आवश्यक है। प्लेट के सीमांत भाग को प्लेट किनारा कहते हैं, जबकि दो प्लेट के मध्य संचलन मंडल को प्लेट सीमा कहते हैं।
संवहनीय धाराओं के अनुरूप भू-प्लेटों का विस्थापन तीन प्रकार से होता है-
जब दो भिन्न दिशाओं से संवहनी धाराएं परस्पर मिलती हैं तब एक प्लेट अवतलित हो जाती है तथा दूसरी उसके ऊपर चढ़ जाती है। फलस्वरूप संपीड़न के कारण प्लेटों के किनारों पर वलित पर्वतों का निर्माण होता है। अंतः सागरीय खड्ड (Canyons) एवं गर्त (Deeps) इसी क्रिया से उत्पन्न होते हैं। अभिसारी विवर्तनिकी में प्लेटों के किनारे विनाशात्मक (Destructive) होते हैं। इन्हीं के किनारों पर अत्यधिक भूकंप आते हैं।
प्रशांत महासागर की पश्चिमी एवं पूर्वी सीमा के सहारे अनेक खाईयां (Trenches) ऐसे ही विनाशात्मक किनारों पर निर्मित हैं। चिली, जापान, ताइवान, न्यूजीलैंड और फिलीपींस में अनेक भ्रंशों का निर्माण अभिसारी विवर्तनिकी के कारण हुआ है।
भूपटल में किसी भ्रंश (Fault) के सहारे स्थित दो प्लेटें परस्पर रगड़ती हुई अथवा एक-दूसरे के पार्श्व में संवहनिक धाराएं चलती हैं। इनसे नति-लंब सर्पण (Strike-Stip Fault) भ्रंश उत्पन्न होते हैं। इस विवर्तनिकी में प्लेटों के किनारे संरक्षी (Conservative) होते हैं। इन किनारों पर न तो नए पदार्थ का निर्माण होता है और न ही पदार्थ का विनाश होता है। ऐसी स्थिति मध्य महासागरीय कटक के पास होती है। पैसिफिक तथा अमेरिकन प्लेटों के मध्य सान एंड्रियास भ्रंश इसी प्रकार निर्मित है।
भू-प्लेटों की विवर्तनिकी से महासागरीय तलों की अपेक्षा महाद्वीप अधिक प्रभावित होते हैं। संवहन धाराओं को उत्पन्न करने वाले पिघले हुए मैग्मा की उत्पत्ति का कारण भूमिगत रेडियो- एक्टिव तत्वों का विखंडन है। प्लेटों के विस्थापन की गति 1 से 6 सेंटीमीटर प्रति वर्ष है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से महाद्वीपीय विस्थापन, समुद्र तली प्रसरण, ध्रुवीय परिभ्रमण, द्वीप चाप आदि पर प्रकाश पड़ता है।
धन्यवाद दोस्तों, आपको 'प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(Plate tectonic theory)' के विषय में जानकारी कैसी लगी जरूर बताएं। आप अपना सुझाव हमें दे सकते हैं।