अपवाह तंत्र किसे कहते हैं? या अपवाह तंत्र क्या है?
अपवाह का अभिप्राय जल धाराओं तथा नदियों द्वारा जल के धरातलीय प्रवाह से है। अपवाह तंत्र या प्रवाह प्रणाली किसी नदी तथा उसकी सहायक धाराओं द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था है यह एक तरह का जालतंत्र या नेटवर्क है जिसमें नदियां एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनाती हैं। किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियां और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तंत्र बनाते हैं।
एक नदी बेसिन आसपास की नदियों के बेसिन से जल विभाजक के द्वारा सीमांकित किया जाता है। नदी बेसिन को एक बेसिक जियोमॉर्फिक इकाई (Geomorphic Unit) के रूप में भी माना जाता है जिससे किसी क्षेत्र एवं प्रदेश की विकास योजना बनाने में सहायता मिलती है।
नदी बेसिन के वैज्ञानिक अध्ययन का महत्व निम्न कारणों से होता है-
(i) नदी बेसिन को एक अनुक्रमिक अथवा पदानुक्रम में रखा जा सकता है।
(ii) नदी बेसिन एक क्षेत्रीय इकाई (Area Unit) है जिसका मात्रात्मक अध्ययन किया जा सकता है और आंकड़ों के आधार पर प्रभावशाली योजनाएं तैयार की जा सकती हैं।
(iii) नदी बेसिन को एक कार्य-तंत्र के रूप में अध्ययन किया जा सकता है, जिसमें ऊर्जा, निवेश, तापमान तथा वर्षा जैसे जलवायु तथ्यों को भली-भांति समझा जा सकता है।
भारत के अपवाह तंत्र के भाग -
भारत नदियों का देश है, जहां 4000 से भी अधिक छोटी-बड़ी नदियां मिलती हैं। इनके अपवाह को मोटे तौर पर दो वर्गों में विभक्त किया जाता है। यथा-
(A) हिमालय का अपवाह तंत्र
(B) प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र
❅ हिमालय का अपवाह तंत्र (The Himalayan Drainage System)-
हिमालय की उत्पत्ति के पूर्व तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलने वाली सिंधु, सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदी टेथिस भूसन्नति में गिरती थी, तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियां जैसे चंबल, बेतवा, केन तथा सोन इत्यादि उत्तर प्रवाहित होती हुई टेथिस भूसन्नति में गिरती थी। टेथिस भूसन्नति के मलबे पर भारतीय प्लेट के दबाव से वृहद हिमालय की उत्पत्ति हुई जिसका उत्थान धीरे-धीरे हुआ। फलस्वरूप सिंधु, सतलज़ तथा ब्रह्मपुत्र ने मार्ग में उठने वाले वृहद हिमालय को काटकर अपनी दिशा पूर्ववत बनाए रखा जिसके फलस्वरूप इन्हें पूर्ववर्ती नदी (Antecedent River) कहा जाता है। इन तीनों नदियों ने वृहद हिमालय को काटकर खड़े कगार वाले खड्डों का निर्माण किया है जिनको गॉर्ज (Gorg) कहा जाता है, जैसे सिंधु गॉर्ज जम्मू-कश्मीर में सिंधु नदी द्वारा बनाया गया है। शिपकीला गॉर्ज हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी द्वारा बनाया गया है तथा कोरबा गार्ज अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बनाया गया है।
वृहद हिमालय के धीरे-धीरे ऊपर उठते रहने के दौरान वर्षा का जल हिमालय पर नदी घाटियों का विकास किया। वृहद हिमालय की चोटियों के हिमरेखा से ऊपर उठने के पश्चात् वृहद हिमालय पर बर्फ का आवरण हो गया जिनसे निकले हिमनद, नदियों द्वारा बनाई गई घाटियों से होकर बहने लगे। इस प्रकार वृहद हिमालय में पहले नदी घाटियां बनी फिर हिमनद। इन नदियों को अनुवर्ती नदी (Consequent River) कहा जाता है, क्योंकि ये ढाल के अनुरूप बहना प्रारंभ करती हैं।
वृहद हिमालय की नदियों द्वारा लाया गया अवसाद वृहद हिमालय के दक्षिण टेथीस भूसन्नति में जमा किया गया जिसमें विभिन्न चट्टानें जैसे बलुआ पत्थर, चूना पत्थर एवं कांग्लोमरेट इत्यादि का निक्षेप निश्चित हुआ, जिसके फलस्वरूप टेथीस की तलहटी अवसाद भार से लचकती गई। इस पर पुनः भारतीय प्लेट के दबाव से मध्य या लघु हिमालय की धीरे-धीरे उत्पत्ति हुई जिसे वृहद हिमालय से निकलने वाली विभिन्न नदियों जैसे यमुना, गंगा, काली, गंडक, कोसी तथा तीस्ता नदियों ने मध्य हिमालय को काटकर अपनी घाटी पूर्ववत बनाए रखा। इसलिए ये मध्य तथा शिवालिक हिमालय की पूर्ववर्ती नदियां कहलाती हैं।
मध्य हिमालय से निकलने वाली नदियों ने मध्य हिमालय के दक्षिण टेथीस भूसन्नति में अवसादन किया, जिस पर पुनः भारतीय प्लेट के उत्तर पूर्व खिसक कर दबाव डालने से शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति हुई। स्मरणीय है कि मध्य हिमालय की उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मपुत्र नदी का जल मध्य हिमालय के दक्षिणी पर्वत-पाद के सहारे पूरब से पश्चिम प्रवाहित होने लगा जो पश्चिम में पाकिस्तान की सिंधु नदी में मिलकर अरब सागर में गिरता था। इसे इंडो-ब्रह्म या शिवालिक नदी कहा जाता था, जो अपनी घाटी में अवसादन कर रही थी। इसी अवसादन पर भारतीय प्लेट के उत्तर-पूर्व गतिशील होकर दबाव के फलस्वरूप शिवालिक पर्वत की उत्पत्ति हुई जिसे मध्य हिमालय से निकलने वाली नदियों ने काटा शिवालिक के लिए पूर्ववर्ती कहलायी।
स्मरणीय है कि शिवालिक की उत्पत्ति के समय ही अरावली-दिल्ली कटक ऊपर उठा जिससे इंडो ब्रह्म नदी का मार्ग अवरुद्ध हो गया। दिल्ली-अरावली-कटक के पश्चिम इसकी घाटी सूख गई जिसे परित्यक्त घाटी कहते हैं। आज यह सरस्वती या घग्घर के नाम से अवशिष्ट घाटी के रूप में हरियाणा तथा राजस्थान में स्थित हैं। दिल्ली कटक के ऊपर उठने से इंडो ब्रह्म नदी छिन्न-भिन्न हो गई एवं वर्तमान तीनों नदी तंत्रों में बंट गई। यथा- (i) सिंधु नदी तंत्र, (ii) गंगा नदी तंत्र, (iii) ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
(I) सिंधु तंत्र (The Sindhu System)-
सिंधु तंत्र विश्व के विशालतम नदी तंत्रों में से एक है। इसके अंतर्गत सिंधु तथा उसकी सहायक झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज, जास्कर, गोमल, द्रास, श्योक, शिगार, कुर्रम, काबुल तथा गिलगिट सम्मिलित हैं। सिंधु तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट चेमायंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है। यह 2,880 किमी लंबी है तथा इसका संग्रहण क्षेत्र 11.65 लाख वर्ग किमी (भारत में 3.21 लाख वर्ग किमी) है। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते के अंतर्गत भारत सिंधु व उसकी सहायक नदियों में झेलम और चिनाब के 20% जल का उपयोग कर सकता है।
सिंधु नदी की बाईं ओर से मिलने वाली नदियों में पंजाब की पांच नदियां सतलज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम (पंचनद) सबसे प्रमुख हैं। ये पांचों नदियां संयुक्त रूप से सिंधु नदी की मुख्यधारा से मिठानकोट के पास मिलती हैं। जास्कर, स्यांग, शिगार व गिलगिट बाईं ओर से मिलने वाली अन्य प्रमुख नदियां हैं। दाईं ओर से मिलने वाली नदियों में श्योक, काबुल, कूर्रम, गोमल आदि प्रमुख हैं। काबुल व उसकी सहायक नदियां सिंधु में अटक के पास मिलती हैं। सिंधु नदी दक्षिण-पश्चिम की ओर बहते हुए करांची के पूर्व में अरब सागर में गिरती है।
झेलम पीर पंजाल पर्वत के पदस्थली में स्थित बेरीनाग के समीप शेषनाग झील से निकलकर वुलर झील में मिलती है। पुन: आगे बढ़कर मुजफ्फराबाद से मंगला तक यह भारत-पाक सीमा के लगभग समानांतर बहती है। कश्मीर की घाटी में अनंतनाग से बारामुला तक झेलम नदी नौकागम्य है। झेलम तथा रावी पाकिस्तान में चिनाब नदी से मिल जाती है।
चिनाब सिंधु की विशालतम सहायक नदी है जो हिमाचल प्रदेश में चंद्रभागा कहलाती है। यह नदी लाहुल में बाड़ालाचा ला दर्रे के दोनों ओर से चंद्र और भागा नामक दो नदियों के रूप में निकलती हैं ।
रावी का उद्गम स्थल कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के समीप है। इसी के निकट व्यासकुंड से व्यास नदी भी निकलती है। इसकी घाटी को कुल्लू घाटी कहते हैं। व्यास, सतलज की सहायक नदी है एवं कपूरथला के निकट हरि के नामक स्थान पर उससे मिलती है। सतलज नदी मानसरोवर झील के समीप स्थित राकस ताल से निकलती है और शिपकिला दर्रे के पास भारत (हिमाचल प्रदेश) में प्रवेश करती है। स्पीति नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है। प्रसिद्ध भाखड़ा-नांगल बांध सतलज नदी पर ही बनाया गया है।
(II) गंगा तंत्र (The Ganga System)-
गंगा नदी का उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमानी है। यहां यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है। गंगा की दो शीर्ष धाराएं अलकनंदा तथा भागीरथी हैं, जो उत्तराखंड में देव प्रयाग में संगम कर गंगा का निर्माण करती हैं। अलकनंदा का उद्गम स्थल सतोपंथ हिमानी में है। अलकनंदा की दो धाराएं- धौलीगंगा एवं विष्णु गंगा, विष्णु प्रयाग के निकट परस्पर मिलती हैं। पिंडार नदी कर्ण प्रयाग में अलकनंदा से मिलती है, जबकि मंदाकिनी रूद्र प्रयाग के निकट अलकनंदा से मिलती है। गंगा हरिद्वार के निकट पहाड़ों से निकलकर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इसमें दाहिनी ओर से यमुना, प्रयाग के निकट मिलती है। दक्षिणी पठार से आकर सीधे गंगा में मिलने वाली नदी टोंस एवं सोन हैं, जो क्रमशः इलाहाबाद के बाद एवं पटना से पहले गंगा में मिलती हैं। गंगा के बाएं तट की मुख्य सहायक नदियां पश्चिम से पूर्व इस प्रकार हैं- रामगंगा, वरुणा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी तथा महानंदा। गंगा नदी की सबसे अधिक लंबाई उत्तर प्रदेश में है। जब गंगा नदी पश्चिम बंगाल में पहुंचती है तो भागीरथी और हुगली नाम की दो प्रमुख वितरिकाओं में बट जाती हैं। ज्ञातव्य है कि वितरिका (Distributary) मुख्य नदी से निकलने वाली ऐसी छोटी नदी होती है जिसमें वह पुनः नहीं मिलती है, जैसे- हुगली। आगे छोटा नागपुर पठार की दामोदर नदी हुगली में आकर मिलती है। फरक्का बांध हुगली नदी पर ही बना है। मुख्य नदी भागीरथी बांग्लादेश में चली जाती है, जहां वह पहले पद्मा की संज्ञा से अभिहित की जाती है। यहां से गंगा कई धाराओं में बंटकर डेल्टाई मैदान में दक्षिण की ओर बहती हुई समुद्र से मिलती है। पाबना से पूर्व, गोलुंडो के पास ब्रह्मपुत्र (जो यहां जमुना के नाम से जानी जाती है) पद्मा से मिलती है। संयुक्त धारा पद्मा के नाम से आगे बढ़ती है। चांदपुर के पास मेघना इससे आ मिलती है और तत्पश्चात यह मेघना नाम से ही अनेक जल वितरिकाओं में बंटकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है, जिसका विस्तार हुगली और मेघना नदियों के बीच है। डेल्टा का समुद्री भाग घने वनों से ढका है। सुंदरी वृक्ष की अधिकता से यह सुंदरवन कहलाता है। हुगली को विश्व की सबसे अधिक विश्वासघाती नदी (Treacherous River) कहते हैं। इसी तट पर कोलकाता बंदरगाह है जिसे ' पूर्व का लंदन ' कहते हैं।
यमुना नदी गंगा नदी-तंत्र की सर्वाधिक लंबी सहायक नदी है जो बंदरपूंछ श्रेणी पर स्थित यमुनोत्री हिमानी (टिहरी गढ़वाल जिला) से निकलती है। इसमें चंबल, बेतवा, सिंध, तथा केन नदियां आकर मिलती हैं। ये सभी मालवा के पठार से बहती हैं। सोन नदी अमरकंटक की पहाड़ियों में नर्मदा के उद्गम स्थल के निकट से निकलती है।
(III) ब्रह्मपुत्र तंत्र (The Brahmaputra System)-
ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में सांगपो या सांपू) मानसरोवर झील के निकट चेमायुंगडुंग हिमनद से निकलती है। यह गंगा में मिलने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी है। इसका अपवाह तंत्र तीन देशों- तिब्बत (चीन), भारत व बांग्लादेश में विस्तृत है। इस नदी का बेसिन मानसरोवर झील में मरियन ला दर्रे द्वारा पृथक है। अपने उत्पत्ति स्थान से पश्चिम से पूर्व की ओर एक 1100 किमी तक मुख्य हिमालय श्रेणी के समानांतर बहती है। इसके बाद यह दक्षिण की ओर तीव्र मोड़ बनाते हुए नामचा बर्वा के निकट एक गहरा कैनियन का निर्माण करती है, जहां यह दिहांग (अरुणाचल प्रदेश में) कहलाती है। पासीघाट के निकट (सादिया नगर के पास) दो सहायक नदियां दिबांग और लोहित के मिलने के बाद इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। इसके बाद यह असम घाटी में प्रवेश करती है जहां कई सहायक नदियां ब्रह्मपुत्र से मिलती हैं। इनमें सुबनसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादिया, कपिली और मानस हैं। ध्यातव्य है कि कपिली नदी ब्रह्म अर्थात ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। कापरूप नगर इसी के तट पर अवस्थित है। असम घाटी में ब्रह्मपुत्र नदी गुंफित जल मार्ग बनाती है जिसमें मांजुली जैसे कुछ बड़े नदी द्वीप भी मिलते हैं। यह धुबरी शहर तक पश्चिम की ओर बहती है और तत्पश्चात गारो पहाड़ी से मुड़कर दक्षिण की ओर धुबरी (गोलपारा) के पास बांग्लादेश में प्रवेश करती है। बांग्लादेश में इसका नाम जमुना है। यहां ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में पद्मा (गंगा) में मिल जाती हैं। मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्गम मणिपुर की पहाड़ियों से होता है। बराक नदी बांग्लादेश में तब तक बहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता।
यह भी पढ़ें- 1. भारत में अपवाह प्रतिरूप (Drainage Pattern in India)
2. पर्यावरण किसे कहते हैं?(what is environment in hindi)
❅ प्रायद्वीपीय अपवाह (The Peninsular Drainage) -
भारतीय प्रायद्वीप एक प्राचीन स्थिर भूखंड है। अतएव प्रायद्वीप की नदियां हिमालय की तुलना में अधिक पुरानी हैं। यह प्राय: प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी हैं, अर्थात् नदियां आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं और उनकी ढाल प्रवणता (Slope Gradiant) अत्यंत मंद है। सिर्फ वही हिस्से अपवाद हैं जहां नया भ्रंशन हुआ है। नदियों ने कम उर्ध्वाधर अपरदन तथा अधिक क्षैतिज अपरदन के कारण चौड़ी तथा उथली घाटियों का निर्माण किया है। प्रायद्वीपीय नदियों में विसर्पों (Menders) का अभाव है तथा उनके मार्ग लगभग निश्चित हैं। ये वर्षा पर निर्भर रहती हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती हैं। यहां की अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, कुछ अरब सागर में तथा कुछ विशाल मैदान की ओर बहती हुई गंगा व यमुना नदियों में मिल जाती हैं। कुछ नदियां अरावली तथा मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रण अथवा खंभात की खाड़ी में गिरती हैं। यहां की प्रमुख नदियां दो भागों में विभक्त हैं- (i) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां। (ii) अरब सागर में गिरने वाली नदियां।
@ बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां-
(i) महानदी- यह 858 किमी लंबी है इसका जल प्रवाह क्षेत्र 141589 वर्ग किमी है। यह छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिंहावा से निकलकर पूर्व व दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई कटक (उड़ीसा) के निकट बड़ा डेल्टा बनाती है। शिवनाथ, हसदेव, मंड और डूब उत्तर की ओर से इसमें आकर मिलती हैं, जबकि जोंक व तेल दक्षिण की ओर से आकर मिलती हैं। हीराकुंड, टिकरपारा व नराज इस नदी पर प्रमुख बहुउद्देशीय योजनाएं हैं।
(ii) ब्राह्मणी, वैतरणी और स्वर्णरेखा नदियां- ब्राह्मणी और स्वर्णरेखा नदियां छोटा नागपुर पठार पर रांची के दक्षिण- पश्चिम से निकलती हैं तथा वैतरणी नदी उड़ीसा के क्योंझर पठार से निकलती है। ब्राह्मणी नदी कोयल और सांख नदियों से मिलकर बनी है। यह 705 किमी लंबी है। वैतरणी और ब्राह्मणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली दो अन्य नदियां हैं। स्वर्णरेखा नदी 395 किमी लंबी है। यह मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
(iii) गोदावरी नदी- प्रायद्वीप भारत की यह सबसे लंबी नदी है। यह 1,465 किमी लंबी है। इसका जल प्रवाह क्षेत्र 3,13,812 वर्ग किमी है। इसका 44% भाग महाराष्ट्र में, 23% भाग आंध्र प्रदेश में तथा 20% भाग मध्यप्रदेश में पड़ता है। पश्चिमी घाट की नासिक की पहाड़ियों में त्रयंबक इसका उद्गम स्थान है। उत्तर में इसकी प्रमुख सहायक नदियां प्रणाहिता, पूर्णा, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा तथा इंद्रावती हैं। दक्षिण में मंजीरा नदी प्रमुख हैं, जो हैदराबाद के निकट इसमें मिलती है। गोदावरी के निचले भाग में बाढ़ें आती रहती हैं। अपने इसी भाग में यह नौकागम्य योग्य है। इस नदी पर अनेक जलविद्युत योजनाओं का निर्माण किया गया है।
(iv) कृष्णा नदी- यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी बड़ी नदी है। महाबलेश्वर के निकट से निकलकर दक्षिण-पूर्व दिशा में 1400 किमी की लंबाई में बहती है। इसका अपवाह क्षेत्र 2,59,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है, जिसका 27% महाराष्ट्र में, 44% कर्नाटक में तथा 29% आंध्र प्रदेश में पड़ता है। कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगभद्रा और मूसी इसकी प्रमुख नदियां हैं। तुंगभद्रा की सहायक नदी हगरी (वेदावथी) है। जल -विद्युत योजनाओं की दृष्टि से इस नदी का बड़ा महत्व है। कृष्णा नदी डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका डेल्टा गोदावरी के डेल्टा से मिल गया है।
(v) कावेरी नदी- यह कर्नाटक के कुर्ग जिले में ब्रह्मगिरि के निकट से निकलकर 805 किमी लंबी तथा 87,900 वर्ग किमी क्षेत्र पर बहती है। इसके कुल अपवाह क्षेत्र का 3% केरल में, 41% कर्नाटक में तथा 56% तमिलनाडु में पड़ता है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां उत्तर में हेमावर्ती, लोकापावनी, शिमसा व अरकावती, दक्षिण में लक्ष्मण तीर्थ, कबबीनी, सुवर्णवती, भवानी और अमरावती हैं। यह शिवसमुद्रम् नामक प्रसिद्ध जलप्रपात बनाती है। तिरुचिरापल्ली से 16 किमी पूर्व की ओर कावेरी का डेल्टा प्रारंभ होता है। यहां पर यह दो धाराओं उत्तर में कोलेरुन तथा दक्षिण में कावेरी में बट जाती है। कावेरी नदी को 'दक्षिण की गंगा' की उपमा प्रदान की गई है। इसके प्रवाह क्षेत्र को 'राइस बाउल ऑफ साउथ इंडिया' कहा जाता है। प्रायद्वीपीय नदियों में कावेरी ही एक ऐसी नदी है जिसमें वर्ष भर जल प्रवाह बना रहता है, क्योंकि इसके ऊपरी जल-ग्रहण क्षेत्र (कर्नाटक) में दक्षिण पश्चिम मानसून से तथा निचले जल-ग्रहण क्षेत्र (तमिलनाडु) में उत्तरी - पूर्वी मानसून से वर्षा होती है।
(vi) पेन्नार- यह कर्नाटक के कोलार जिले के नंदी दुर्ग पहाड़ी से निकलती है तथा इसका प्रवाह क्षेत्र कृष्णा तथा कावेरी के मध्य 55,213 वर्ग किमी है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां जयमंगली, कुंदेरू, सागीलेरू, चित्रावली, पापाशनी तथा चेयेरु हैं।
(vii) पलार- इसका उद्गम कर्नाटक राज्य के कोलार जिला से होता है। यह आंध्र प्रदेश के चिंतूर तथा तमिलनाडु के अर्काट जिले से प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
(viii) वैगई- यह नदी तमिलनाडु राज्य के मदुरई जिला के वरशानद पहाड़ी से निकलकर मदुरई, रामनाथपुरम आदि जिलों से प्रवाहित होते हुए मंडपभ के पास पाक की खाड़ी में समाहित हो जाती है। मदुरई नगर इसी नदी के तट पर स्थित है।
(ix) ताम्रपर्णी- यह तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवली जनपद की प्रमुख नदी है, जिसका उद्गम दक्षिणी सहयाद्री के अगस्त्यमलाई पहाड़ी के ढालों से होता है। यह मन्नार की खाड़ी में जाकर गिरती है।
💠 अरब सागर में गिरने वाली नदियां-
(i) नर्मदा- नर्मदा का उद्गम मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी (1057 मी) से है। यह 1,312 किमी लंबी है। इसका अपवाह क्षेत्र 98,795 वर्ग किमी है, जिसका 87% भाग मध्यप्रदेश में, 11.5% गुजरात में तथा 1.5% महाराष्ट्र में पड़ता है। यह अरब सागर में गिरने वाली प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है। इसके उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है। इनके बीच में यह भ्रंश घाटी में बहती है। जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानों में एक भव्य कंदरा और कपिलधारा (धुआंधार) जल प्रपात का दृश्य बड़ा मनोहर है, जहां 23 मीटर की ऊंचाई से जल गिरता है। नर्मदा का निचला भाग नाव चलाने योग्य है। यह भडौंच के निकट ज्वारनदमुख द्वारा खंभात की खाड़ी में गिरती है। तवा, बरनेर, बैइयार, दूधी, शक्कर, हिरण, बरना, कोनार, माचक आदि नर्मदा की सहायक नदियां हैं।
(ii) तापी (ताप्ती)- यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुल्ताई नामक स्थान के पास सतपुड़ा श्रेणी (762 मी) से निकलती है। यह 724 किमी लंबी है व 65,145 वर्ग किमी क्षेत्र पर अपना प्रभाव रखती है। इसके बेसिन का 79% भाग महाराष्ट्र में, 15% मध्य प्रदेश में तथा 6% गुजरात में पड़ता है। यह सतपुड़ा तथा अजंता पर्वतों के बीच भ्रंश घाटी में प्रवाहित होती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी पूरणा है। नर्मदा के समानांतर सतपुड़ा के दक्षिण से बहकर खंभात की खाड़ी में गिरती है। इसके मुहाने पर सूरत नगर है स्थित है। काकरापार तथा उकाई परियोजनाओं द्वारा इसके जल का उपयोग होता है।
(iii) साबरमती- यह 320 किमी लंबी नदी है। राजस्थान में मेवाड़ पहाड़ियों से निकलकर खंभात की खाड़ी में गिरती है। अहमदाबाद इस नदी के किनारे स्थित सबसे बड़ा नगर है। यह तीसरी बड़ी पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदी है।
(iv) माही नदी- इसका उद्गम मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्याचल पर्वत से होता है। यह नदी 553 किमी की दूरी तय करने के बाद खंभात की खाड़ी में जाकर मिलती है। इसका अपवाह क्षेत्र 34,842 वर्ग किमी है जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्य में फैला हुआ है। सोम और जाखम इसकी मुख्य सहायक नदियां हैं।
(v) लूनी नदी- यह राजस्थान में अजमेर के दक्षिण-पश्चिम में अरावली श्रेणी के नाग पर्वत से निकलकर 320 किमी प्रवाहित होने के बाद कच्छ के रण के दलदल में विलुप्त हो जाती है। सरसुती, जवाई, सूखड़ी, लीलड़ी तथा मीठड़ी नदियां लूनी की सहायक नदियां हैं। इनमें सरसुती का उद्गम पुष्कर झील से होता है।
(vi) घग्घर नदी- यह हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों से शिमला के पास से निकलती है। इसकी कुल लंबाई 465 किमी है। यह अंबाला, पटियाला व हिसार जिलों से बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में प्रविष्ट होती है तथा अंततः हनुमानगढ़ के समीप भटनेर के मरुस्थल में विलीन हो जाती है।
➡️ सहयाद्रि से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियां-
पश्चिम घाट अपने पश्चिम की ओर तेज ढाल रखने वाला पर्वत है। यह पर्वत दक्षिण-पश्चिम मानसून हवाओं को रोककर वर्षा करते हैं। तटीय मैदान काफी संकरे हैं। इस धरातलीय व जलवायु विशेषता के कारण नदियां छोटी व तीव्रगामी हैं। प्रमुख नदियां इस प्रकार हैं। यथा-
@ गुजरात में- शतरंजी, भादर।
@ गोवा में- मांडवी,जुआरी और राचोल।
@ कर्नाटक में- काली नदी, गंगावेली, बेड़ती, शरावती, तादरी, नेत्रवती।
@ केरल में- भरतपूजा, पेरियार, पांबा।
ये सब नदियां तेज ढाल बनाती हुई तंग घाटियों व जलप्रपातों का निर्माण करती हैं। शरावती नदी का जोग प्रपात 271 मीटर ऊंचा प्रसिद्ध प्रपात है। भरतपूजा केरल की सर्वाधिक लंबी नदी है, इसे पोन्ननी के नाम से जानते हैं। पेरियार केरल की दूसरी सबसे लंबी नदी है, जो अन्नामलाई पहाड़ी से निकलकर वेंबनाड झील के उत्तर में अरब सागर में गिरती है। यद्यपि इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है, लेकिन ये नदियां कुल अपवाह का 2% भाग ले जाती हैं। अधिकांश नदियां चौड़ी संकीर्ण खाड़ियां (Creeks) बनाती हैं। ये संकीर्ण खाड़ियां बंदरगाह रखने वाली हैं। इनकी सिंचाई क्षमता काफी कम है, लेकिन जल-विद्युत उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। इसी कारण यहां पर अनेक जल-विद्युत योजनाएं क्रियान्वित की गई है।