ग्रहण क्या है? (What is eclipse in Hindi)
ग्रहण एक ऐसा घटना है जो सौरमंडल में एक ग्रह दूसरे ग्रह के बीच आता है और एक ग्रह दूसरे ग्रह की रोशनी को पूरी तरह से या आंशिक रूप से ब्लॉक करता है। यह इसलिए होता है क्योंकि ग्रहों का स्थान और उनकी चाल का अंतरिक्ष में एक निश्चित मार्ग होता है और जब किसी ग्रह का उस मार्ग पर आना होता है और वह दूसरे ग्रह से एक सीधी रेखा पर होता है तो वह दूसरे ग्रह के सामने से गुजरता हुआ उसकी रोशनी को ब्लॉक करता है। इस तरह के घटनाक्रम को ग्रहण कहा जाता है।
यदि किसी एक प्रकाश बिंदु से मुक्त होने वाले प्रकाश के मार्ग में कोई वस्तु आ जाती है, तो उससे एक छाया बनती है। इसको 'प्रच्छाया ' (Umbra) कहा जाता है। प्रच्छाया के अंतर्गत किसी भी स्थान से देखने पर प्रकाश स्रोत ढका हुआ दिखाई पड़ता है, परंतु यदि प्रकाश स्रोत एक बिंदु न होकर विस्तृत होता है, तो उसके मार्ग में आने वाली वस्तु की छाया के तीन अलग-अलग क्षेत्र होंगे। प्रथम, एक नोंक पर झुकी हुई घनी शंक्वाकार छाया होती है, जो प्रच्छाया होती है। प्रच्छाया में प्रकाश बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ता है। इसके दोनों ओर एक नोंक पर झुकी हुई कम घनी छाया होती है, जिसे 'उपछाया ' (Penumbra) कहा जाता है। इस क्षेत्र में आंशिक छाया होती है अर्थात् यहां आंशिक रूप से प्रकाश भी विद्यमान होता है।
➡️चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)-
चंद्रमा के प्रकाशित भाग के ढक जाने को चंद्र ग्रहण करते हैं। इसका कारण चंद्रमा, पृथ्वी एवं सूर्य की सापेक्ष स्थिति है। परिक्रमण करते हुए जब पृथ्वी, सूर्य एवं चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो चंद्रमा को सूर्य का प्रकाश प्राप्त नहीं होता, अतः आने वाले प्रकाश के सामने पृथ्वी के आ जाने से चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ जाती है, जिसे चंद्र ग्रहण करते हैं। पूर्णिमा के दिन सूर्य, पृथ्वी एवं चंद्रमा तीनों सीध में होते हैं किंतु हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं होता। इसका कारण यह है कि चंद्रमा और पृथ्वी के कक्ष तल भिन्न-भिन्न हैं। चंद्रमा का कक्ष तल पृथ्वी के कक्ष तल से 5°9' का कोण बनाता है। चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को दो स्थानों पर काटती है। केवल इन दो पात बिंदुओं (Nodes) पर ही जब चंद्रमा आता है तब उस पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण होता है। यह 'वियुति ' (Opposition) की स्थिति होती है। पूर्ण चंद्र ग्रहण लगभग 1 घंटे 40 मिनट तक होती है। अधिकतम चंंद्र ग्रहणों में चंद्रमा का रंग लाल होता है।
पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए जब किसी अमावस्या के दिन चंद्रमा, पृथ्वी एवं सूर्य के बीच आ जाता है, तो पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है। फलस्वरूप सूर्य का संपूर्ण प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है। सूर्य का कुछ भाग चंद्रमा की छाया में पड़ जाता है। सूर्य की आकृति पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया शुभ सूर्य ग्रहण कहलाती है। जब चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है तो पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है। जब चंद्रमा द्वारा सूर्य का कुछ अंश ही ढक पाता है तो "आंशिक सूर्य ग्रहण" होता है। सूर्य ग्रहण अमावस्या को होता है, किंतु प्रत्येक अमावस्या को नहीं। सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन केवल उस स्थिति में होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के कक्ष तल में आ जाता है तथा पृथ्वी, सूर्य एवं चंद्रमा एक सीध में होते हैं। यह स्थिति 'युति' (Conjuction) कहलाती है।
* सूर्य ग्रहण की अवधि में जब सूर्य एक चमकती हुई अंगूठी के रूप में दिखाई पड़ता है, तो इसे 'डायमंडरिंग'(Dimond Ring) कहा जाता है।
* एक कैलेंडर वर्ष में अधिकतम 7 ग्रहण (सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण को मिलाकर) हो सकते हैं, तथा सूर्य ग्रहण की घटना वर्ष में कम से कम 2 बार व अधिकतम 5 बार हो सकती है। प्रत्येक सूर्य ग्रहण के दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं होता है।
➡️सिजिगी (Syzygy)-
सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की रेखीय स्थिति सिजिगी कहलाती है, जो दो तरह से होती है-
(i) सूर्य - चंद्रमा - पृथ्वी = युति
(ii) सूर्य - पृथ्वी - चंद्रमा = वियुति