पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई,(Origin of the Earth)
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में सर्वप्रथम तर्कपूर्ण परिकल्पना का प्रतिपादन फ्रांसीसी वैज्ञानिक कास्ते दी बफन द्वारा 1749 ईस्वी में किया गया। वर्तमान समय में पृथ्वी व अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के संदर्भ में दो प्रकार की संकल्पना दी गई हैं-
(1). अद्वैतवादी संकल्पना (MonisticConcept)-
इसमें एक ही तारे से संपूर्ण ग्रहों की उत्पत्ति को स्वीकार किया गया है।
(2). द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)-
इसमें दो तारों से ग्रहों की उत्पत्ति को प्रमाणित किया गया है।
➡️अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)-
ज्ञातव्य है कि अद्वैतवाद संकल्पना को 'पैतृक संकल्पना' (Parental Hypothesis) के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसके अनुसार संपूर्ण ग्रहों की उत्पत्ति में एक ही पिता तारे का योगदान है इस मान्यता वाली प्रमुख संकल्पनाएं तथा उनके प्रतिपादक निम्नलिखित हैं-
(1).पुच्छल तारा परिकल्पना (Comet Hypothesis)-
इस परिकल्पना के अनुसार बहुत समय पहले ब्रह्माण्ड में घूमता हुआ एक विशालकाय पुच्छल तारा सूर्य के निकट से गुजरते वक्त सूर्य से टकरा गया।
इस टक्कर के उपरांत बहुत से पदार्थ सूर्य से छिटक कर अलग हो गया। सूर्य से छिटक कर अलग हुए पदार्थ से ही सौरमण्डल का निर्माण हुआ है।
आलोचना :-
● पुच्छलतारा अपनी कक्षा छोड़कर दूसरी कक्षा में आकर सूर्य से कैसे टकराया।
● सूर्य से पुच्छल तारे की टक्कर इतनी महत्व की नहीं होगी कि उससे पूरा सौरमण्डल का ही निर्माण हो ।
● अगर मान लिया जाए कि टक्कर हुआ ही तो टक्कर के बाद निकले पदार्थों ने गोलाकार रूप कैसे धारण कर लिया।
● सूर्य के पास बहुत छोटे ग्रह तथा बीच में कुछ बड़े ग्रह और फिर छोटे ग्रह का क्रम है। इसकी व्याख्या यह सिद्धान्त नही करता है।
● पुच्छलतारे सूर्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि दिनों के परिणाम में तापीय अंतर होता है।
(2). वायव्य राशि परिकल्पना (Gasseous Hypothesis)-
जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कांट ने 1755 ईस्वी में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार एक तप्त एवं गतिशील निहारिका (Nebula) से नौ गोल छल्ले अलग हुए, जिनके शीतल होने से सौरमंडल के नौ ग्रहों का निर्माण हुआ। पृथ्वी भी इन्हीं में से एक है।
(3). निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis)-
फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास में 1796 ईस्वी में कांट के सिद्धांत को संशोधित करते हुए बताया कि एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही छल्ला बाहर निकला जो 9 छल्लों में विभाजित हो गया। इन्हीं के शीतलन से ग्रहों का निर्माण हुआ, जिनमें पृथ्वी भी शामिल है।
(4). उल्कापिंड परिकल्पना (Meteoric Hypothesis)-
लाप्लास का अनुसरण करते हुए ब्रिटिश वैज्ञानिक लॉकियर ने 1919 ईस्वी में अपनी उल्कापिंड परिकल्पना प्रस्तुत की। इनके अनुसार आकाश में असंख्य तारे टूटते रहते हैं, जिन्हें उल्कापिंड कहते हैं। यह उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर कई बार गिर जाते हैं, जिसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह लगभग पृथ्वी जैसे पदार्थ से बने हैं।
लॉकियर की परिकल्पना के अनुसार प्रारंभ में दो विशाल उल्का पिंड आपस में टकराए जिससे भीषण ताप, प्रकाश तथा वात की उत्पत्ति हुई। इन उल्का पिंडों के अधिकांश भाग पिघल कर द्रव में परिवर्तित हो गए तथा कुछ गैस में परिवर्तित होकर बादलों की भांति अंतरिक्ष में वितरित हो गए। ये बादल एकत्रित होकर एक वायव्य महापिंड का निर्माण किया और आपसी टकराव के कारण यह महापिंड घूर्णन करने लगे तथा एक सर्पिल निहारिका का रूप धारण कर लिया।
➡️द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)-
इस विचारधारा के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति कम से कम दो तारों के संयोग से मानी जाती है। इसलिये इस परिकल्पना को "Bi-Parental Hypothesis" भी कहते हैं। इससे सम्बन्धित सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(1). ग्रहाणु परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis)-
इसका प्रतिपादन चैंबरलिन और मोल्टन ने 1905 ईस्वी में किया था। इनके अनुसार ग्रह निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से नहीं वरन् ठोस पिंड से हुआ है। प्रारंभ में दो विशाल तारे थे- सूर्य एवं उसका साथी अन्य तारा। जब यह अन्य विशाल तारा सूर्य के पास पहुंचा तो उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से असंख्य कण अलग हो गए। यही आपस में मिलकर पृथ्वी व अन्य ग्रहों के निर्माण का कारण बने। इस सिद्धांत के द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति, संरचना, महासागर और महाद्वीपों की उत्पत्ति, पर्वतों का निर्माण आदि की व्याख्या करने का भी प्रयास किया गया है।
(2). ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis)-
यह परिकल्पना जेम्स जीन्स (1919 ईस्वी) व जेफरीज (1921 ईस्वी) द्वारा प्रस्तुत किया गया है। पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में यह आधुनिक परिकल्पनाओं में से एक है जिसे पर्याप्त समर्थन प्राप्त है। इसके अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारे के संयोग से हुआ है। सूर्य के निकट इस तारे के आने से सूर्य का कुछ भाग फिलामेंट के रूप में खिंच गया और बाद में टूटकर सूर्य का चक्कर लगाने लगा। यही फिलामेंट सौर मंडल के नौ ग्रहों की उत्पत्ति का कारण बना जिनमें पृथ्वी भी शामिल है। यह परिकल्पना ग्रहों और उपग्रहों के क्रम, आकार व संरचना की भी व्याख्या करती है। |
(3). द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis)-
इस परिकल्पना का प्रतिपादन एच.एन. रसेल ने किया था। यह सिद्धांत जीन्स व जेफरीज की परिकल्पना में ही एक प्रकार से संशोधन है। यह सिद्धांत सूर्य और ग्रहों की दूरी तथा ग्रहों के वर्तमान कोणीय संवेग (Angular Momentum) की व्याख्या करने में भी असमर्थ है। |
(4). नवतारा परिकल्पना (Supernova Hypothesis)-
प्रो. फ्रेड हॉयल और लिटिलटन ने अपनी पुस्तक 'Nature of the Universe' में 1939 ईस्वी में नाभिकीय भौतिकी से संबंधित सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उन्होंने जींस की परिकल्पना में संशोधन करते हुए बताया कि ग्रहों की उत्पत्ति में दो नहीं बल्कि तीन तारों की भूमिका रही है। इस सिद्धांत के अनुसार ग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ। इनका सिद्धांत ग्रहों की आपसी दूरी एवं सूर्य से उनकी दूरी की व्याख्या करने में सर्वाधिक समर्थ है। |
इस परिकल्पना का प्रतिपादन ए. सी. बनर्जी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने 1942 ईस्वी में किया था। इनके अनुसार सूर्य को एक बहुत बड़ा परिवर्ती सीफीड के रूप में माना गया है। इस तरह का तारा क्रमबद्ध लय से स्पंदन कर रहा था और किसी दूसरे आगन्तुक तारे के ज्वारीय प्रभाव के वजह से वह अस्थायी हुआ। जिन पदार्थों की अत्यधिक मात्रा छिटककर बिलकुल अलग हुई उनके संघनन से सूर्य और बाकि ग्रह उत्पन्न हुए। यह एकरूपवादी परिकल्पना में से एक है।
(6). अंतरतारक धूलि परिकल्पना (Intersteller Dust Hypothesis)-
(i) महाविस्फोट सिद्धांत (Big Bang Theory)-
ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संबंध में महाविस्फोट सिद्धांत सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है। इसे 'विस्तृत ब्रह्मांड परिकल्पना' (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है।
इसका प्रतिपादन बेल्जियम के खगोलज्ञ एवं पादरी ऐम जॉर्ज लैमेंतेयर ने किया था। बाद में रॉबर्ट बेगोनेर ने इस सिद्धांत की व्याख्या की। इस सिद्धांत के अनुसार आरंभ में वे सभी पदार्थ जिनसे ब्रह्मांड बना है अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित था, जिनका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था। |
अत्यधिक संकेंद्रण के कारण बिंदु का आकस्मिक विस्फोट हुआ, जिसे महाविस्फोट (Big-Bang) कहा गया। इस अचानक विस्फोट से पदार्थों का बिखराव हुआ, जिससे सामान्य पदार्थ निर्मित हुए। इसके अलगाव के कारण काले पदार्थ बने, जिनके समूहन से अनेक ब्रह्मांडीय पिंडों का सृजन हुआ। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि महाविस्फोट की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट के बाद 1 सेकंड के अल्पांश के अंतर्गत ही एक वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग-बैंग होने के आरंभिक 3 मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ। बिग-बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान तापमान 4500° केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
महाविस्फोट के लगभग 10.5 अरब वर्ष पश्चात यानी आज से 4.5 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल का विकास हुआ जिसमें ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ। इस प्रकार 'बिग-बैंग' परिघटना से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई और तभी से उसमें निरंतर विस्तार जारी है। इसके साक्ष्य के रूप में आकाशगंगाओं के बीच बढ़ती दूरी का साक्ष्य दिया जाता है। NASA ने 2001 ईस्वी में MAP (Microwave Anisotrophy Probe) नामक अनुसंधान में इसकी पुष्टि की।
ब्रह्मांड के निरंतर विस्तारण के साक्ष्य जुटाने में 1920 ईस्वी में एडविन हब्बल का योगदान उल्लेखनीय है। ब्रह्मांड के निरंतर विस्तार के साक्ष्य के रूप में अंतरिक्ष में सूक्ष्म तरंगों की उपस्थिति का पता चलना, अंतरिक्ष में रेडशिफ्ट परिघटना का अवलोकन तथा आधुनिक अध्ययनों में सुपरनोवा का अंतरिक्ष में विस्फोट होना भी ब्रह्मांड के विस्तार के साक्ष्य के रूप में माना जा रहा है।
(ii) स्थिर अवस्था संकल्पना (Steady State Concept)-
इस संकल्पना का प्रतिपादन हॉयल (Hoyle) ने किया था। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत के ही पक्षधर हैं।
धन्यवाद दोस्तों, आपको 'पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई,(Origin of the Earth)' के विषय में जानकारी कैसी लगी जरूर बताएं। आप अपना सुझाव हमें दे सकते हैं।
very nice
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