पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास,(Geological History Of the Earth)
1. महाकल्प (Era)- यह सामान्यतः सबसे बड़ा कालखंड होता है।
➡️आद्य कल्प (Archaean or Azoic)- आद्य कल्प की चट्टानों में ग्रेनाइट तथा नीस की प्रधानता है। इन शैलों में जीवाश्म का पूर्णत: अभाव पाया जाता है।इनमें सोना तथा लोहा की भी मात्रा पाई जाती है। भारत में प्री-कैंब्रियन काल में अरावली पर्वत व धारवाड़ चट्टानों का निर्माण हुआ था।
➡️पूराजीवी महाकल्प (Palaeozoic Era)- इसकी अवधि 59 करोड़ वर्ष पूर्व से 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व तक विद्यमान रहा। इसे प्राथमिक युग (Primary Epoch) की संज्ञा दी जाती है। इस कालखंड में समुद्र से जीवों का पदार्पण स्थल पर हुआ। यह जीव बिना रीढ़ की हड्डी वाले थे।
1. कैंब्रियन शक (Cambrian Period)- इस काल में प्रथम बार स्थल भागों पर समुद्रों का अतिक्रमण हुआ।वनस्पति एवं जीवों की उत्पत्ति इसी शक में हुआ था। प्राचीनतम अवसादी शैलों का निर्माण एवं जीवाश्म इसी शक के कालखंड में मिलता है। परीपेट्स (एनिलीडा एवं आर्थोपोडा संयोजक जंतु) का जीवाश्म इसी काल के चट्टानों में पाया जाता है। भारत में विंध्याचल पर्वतमाला का विकास इसी समय हुआ था। समुद्रों में सर्वप्रथम घासों की उत्पत्ति (सारगैसम आदि) भी इसी काल में हुई थी।
2. आर्डोविसियन शक (Ordovician Period)- इस काल में निम्न कोटि की मछलियों से कोर्डेटा का विकास प्रारंभ हुआ किंतु अभी भी स्थल खंड जीव विहीन था।
4. डिवोनियन शक (Devonian Period)- काल में पृथ्वी की जलवायु केवल समुद्री जीवों (मछलियों) के ही अनुकूल थी। अतः इसे मत्स्य युग के रूप में जाना जाता है। इस शक में उभयचर जीवों (Amphibians) की भी उत्पत्ति हुई। प्रथम उभयचर स्ट्रीगोसिफैलिया का विकास इसी काल में हुआ। इसके अलावा जमीन पर जंगलों का जन्म हुआ तथा फर्न जैसी वनस्पतियों का विस्तार हुआ। इस समय भी कैलिडोनियन पर्वतीकरण होते रहे।
5. कार्बोनीफेरस शक (Carboniferous Period)- इस काल में उभयचरों का काफी विस्तार हुआ इसलिए इसे 'उभयचरों का युग' (Age of Amphibians) कहते हैं। सरीसृप (Reptile) की उत्पत्ति तथा प्रवालरोधिकाओं का निर्माण इसी समय से प्रारंभ हुआ। इस शक को 'बड़े वृक्षों का काल' कहा जाता है। इसी युग में गोंडवाना क्रम के चट्टानों का निर्माण हुआ जिसमें कोयले का व्यापक निक्षेपण हुआ।
6. पर्मियन शक (Permian Period)- इस काल में तृतीय पर्वतीय हलचल 'हर्सीनियन' के फलस्वरूप बने वर्णों के कारण ब्लैक फॉरेस्ट व वास्जेस जैसे भ्रंशोत्थ पर्वतों का निर्माण हुआ।स्पेनिश मेसेटा, अल्टाई, तिएनशान तथा अप्लेशियन पर्वत के कुछ भागों का निर्माण इसी समय हुआ था।
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2. पृथ्वी की आंतरिक संरचना
➡️ मध्यज़ीवी महाकल्प (Mesozoic Era)- इसकी अवधि 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक थी। इसे ट्रियासिक, जुरासिक तथा क्रिटेशियस शकों में बांटा गया है, जो निम्नलिखित हैं-
1. ट्रियासिक शक (Triassic Period)- इसे रेंगने वाले जीवों का काल अर्थात् 'Age of Reptiles' कहा जाता है। इसके अंतिम चरण में उड़ने वाले सरीसृपों- टीरोसोरों एवं सरीसृपों से अंडे देने वाले निम्न कोटि के स्तनियों प्रोटीथिरिया की उत्पत्ति हुई। गोंडवानालैंड भूखंड का विभाजन ट्रियासिक काल में ही प्रारंभ हुआ तथा यह जुरासिक काल तक चलता रहा जिससे अंततः ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के ठोस स्थलखंड का निर्माण हुआ।
2. जुरासिक शक (Jurassic Period)- इस काल में पुष्प पादपों अर्थात् आवृतबीजी (Angiosperms) की उत्पत्ति हुई। जलचर, थलचर तथा नभचर तीनों प्रकार के जीवों का विकास जुरासिक काल में हुआ माना जाता है। स्थल पर डायनासोरों जैसे सरीसृपों का प्रभुत्व था।निम्न स्तनियों (प्रोटोथीरिया) से मार्सूपियल स्तनियों (मेटाथीरिया- कंगारू) की उत्पत्ति हुई। उड़ने वाले सरीसृप से प्रथम पक्षी अर्कियोप्टेरिक्स की उत्पत्ति भी इसी काल में हुआ था। इस समय धरातल पर रेंगने वाले रीढ़ विहीन जीवों की अधिकता थी।
3. क्रिटेशियस शक (Cretaceous Period)- यह मध्यजीवी महाकल्प का अंतिम शक था। इस काल में पर्वत निर्माण क्रिया अत्यधिक सक्रिय रही तथा रॉकी, एंडीज, यूरोप महाद्वीप की कई पर्वत श्रेणियों तथा पनामा कटक (Panama Ridge) की उत्पत्ति आरंभ हुई। क्रिटेशियस काल में एंजियोस्पर्म पौधों का विकास प्रारंभ हुआ। इसी काल में भारत के पठारी भागों में लावा का दरारी उद्भेदन हुआ। उत्तरी पश्चिमी कनाडा, अलास्का, मैक्सिको एवं ब्रिटेन के डोवर क्षेत्र में खड़िया मिट्टी का जमाव इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता है।
➡️सीनोजोइक महाकल्प (Cenozoic Era)- इसकी अवधि 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व से 20 लाख वर्ष पूर्व तक रहा। इस महाकल्प को तृतीयक युग (Tertiary Epoch) की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। इसको 5 शकों में बांटा गया है जो निम्नलिखित हैं-
1. पैल्योसीन शक (Paleocene Period)- इस काल में अल्पाइन पर्वतीकरण, पुष्पी पादपों एवं पुरातन स्तनियों का विस्तार हो रहा था। डायनोसोर समाप्त हो चुके थे।
2. इओसीन शक (Eocene Period)- पिछले युग में निर्मित पर्वत श्रेणियों का इस शक में ऊंचाई में पुनः वृद्धि हुई। वृहद हिमालय का निर्माण प्रारंभ हुआ। इसी समय हिंद महासागर तथा अटलांटिक महासागर का विकास हुआ। वर्तमान स्तनधारी जीवों के अनेक प्रकारों का स्थल पर प्रादुर्भाव हो गया था। हाथी, घोड़ा, गैंडा तथा सूअर के पूर्वजों का उद्भव इस शक में हो गया था।
3. ओलिगोसीन शक (Oligocene Period)- आल्प्स पर्वत का निर्माण इस शक में प्रारंभ हो गया तथा वृहद हिमालय का निर्माण इस काल में पूर्णता की ओर अग्रसर रहा। स्थल भाग पर वर्तमान बिल्ली, कुत्ते तथा भालुओं के पूर्वजों का जन्म हुआ। पुच्छहीन बंदर (Ape) का आविर्भाव हुआ, जिसे मानव का पूर्वज कहा जा सकता है।
4. मायोसीन शक (Miocene Period)- इस काल में पोटवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु या मध्य हिमालय का निर्माण हुआ। आल्पस पर्वत विकास की ओर अग्रसर रहा। ज्ञातव्य है कि इस युग में शार्क मछली का सर्वाधिक विकास हुआ।स्थल पर प्रोकानसल (एक प्रकार का पुच्छहीन बंदर) का स्थानांतरण अफ्रीका से एशिया तथा यूरोप महाद्वीप में हुआ। पेंग्विन का आविर्भाव अंटार्कटिका में हुआ था।
5. प्लायोसीन शक (Pliocene Period)- इस काल में वर्तमान महासागरों तथा महाद्वीपों का स्वरूप प्राप्त हुआ। ब्लैक सागर, उत्तरी सागर, कैस्पियन सागर तथा अरब सागर की उत्पत्ति तथा जलपूर्ण द्रोणी टेथीस भू-सन्नति में अवसादों के जमाव से उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण इसी काल में हुआ था। महान आकार वाली शार्क मछली का विनाश इसी समय हुआ। स्थल पर बड़े-बड़े स्तनधारी जीवों में ह्रास हुआ, किंतु मानव की उत्पत्ति इसी शक में आरंभ हुई थी।
➡️नियोजोइक या नूतन महाकल्प (Neozoic Era)- इस महाकल्प का प्रारंभ आज से लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ और आज भी जारी है। इसे चतुर्थ युग (Quaternary Epoch) की संज्ञा प्रदान किया गया है। इस काल को दो भागों में विभक्त किया गया है। यथा -
1. प्लीस्टोसीन शक (Pleistocene Period)- इस शक की सबसे बड़ी विशिष्टता भूपटल पर हिम चादर की उपस्थिति थी।
उत्तरी अमेरिका में हिमसागर का फैलाव चार विभिन्न समयों में हुआ। यथा- (i) नेब्रास्कन (Nebraskan), (ii) कंसान (Kansan), (iii) इलिनोइन (Illinoin), (iv) विस्कांसिन(Wisconsin)
इसी प्रकार यूरोप में गुंज, मिंडेल, रिस तथा वुर्म संज्ञा के चार हिमयुगों का निर्धारण किया गया है। इसमें मिंडेल व रिस के बीच का आवांतर हिम युग सर्वाधिक लंबी अवधि का था। उत्तरी अमेरिका में महान झीलों तथा नार्वे के फियोर्ड तटों का निर्माण और स्थल रूपों का वर्तमान रूप इसी शक में प्राप्त हुआ।
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